बेहद कड़वा सच , बड़ा अधिकारी बनना बड़ी बात नही , बड़ा इंसान बनना बड़ी बात
दिनेश तिवारी
शहर प्रयागराज में बसे नगर सिविल लाइंस,अशोक नगर में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए,जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर,हैरान परेशान से,रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए,अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।
एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत,यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं,मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था और वो बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आंखों में कुछ प्रश्न, कुछ जिज्ञासा दिखी,तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला,उन्होंने समझाया आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है कि बल्ब किस कम्पनी का बना हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ? बल्ब के फ्यूज़ होने के बाद इनमें से कोई भी बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे बल्ब को कबाड़ में डाल देते हैं कि नहीं ? फेक देते है।जब उन रिटायर्ड अधिकारी महोदय ने सहमति में सिर हिलाया, तो बुजुर्ग बोले-रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो जाती है। हम कहां काम करते थे, कितने बड़े/छोटे पद पर थे, हमारा क्या रुतबा था, यह सब कुछ भी कोई मायने नहीं रखता।इलाहाबाद में बड़े से बड़े राजनीतिक दलों के लोग मिलने के लिए सिफारिश करवाते थे।जिस दिशा की ओर निकलता था लोग झुककर नमस्कार करते थे,दरोगा सैल्यूट करता था। ऐसा कोई विभाग नही था विजिट करने मात्र से घबरा जाते थे।इशारे पर सब दौड़ने लगते थे।आज एकदम विपरीत हो गया है।एकांतवास व नीरस जीवन बन गया है। जब तक दरोगा जी की थानेदारी रही तब तक सिर्फ पैसा पैसा की ओर भागते रहे।
कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते हुए फिर वो बुजुर्ग बोले कि मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं।वो द्विवेदी जी तीन बार विधायक व मंत्री रहे। वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है,मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूं।वो मिश्रा जी जिले के एसपी, आईजी रह चुके है,बनर्जी साहब कमिश्नर रहे है, जायसवाल जी केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल थे,सिंह महोदय डीजीपी थे,तिवारी जी ने कभी नहीं बताया कि रोडवेज में महाप्रबंधक रहे। सामने वाले घर में जज रहते है जो कभी बड़े जज थे। शान शौकत थी पुलिस दरवाजे पर खड़ी रहती थी। आज सुनसान हो गया है।अब हमेशा अपने कमरे के अंदर ही रहते है। तब हर आदमी मिलने के लिए नम्बर लगाए रहता था। आज कोई नहीं पूछ रहा है क्योंकि सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो, कोई रोशनी नहीं, कोई उपयोगिता नहीं, यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे,आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं।मगर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं करता। वो सब हर आदमी जानता है मगर मानता नहीं है।कुछ तो लोग अनपढ़, गवार नेताओं के पीछे सभी राजनीतिक दरवाजे तक भागते है लेकिन अपने को समायोजित नहीं कर पाते है।निराश होकर पार्क में चुपचाप टहलते है,कभी नही बताते है कि फला अफसर रहा हूँ। मेरे पिता फौज में थे जो सन 1965 और 1971 की लड़ाई में अतुलनीय योगदान दिया था,राष्ट्रपति द्वारा पदक से नवाजे गए थे।सूबेदार पद से रिटायर्ड होने के बाद 13 साल फर्जी मुकदमा लड़ना पड़ा, क्योंकि अनुशासन और ईमानदारी के पक्के इंसान थे।समाज में कभी समायोजित नहीं हो पाए थे।आज भी पदक व प्रशस्ति पत्र संदूक में कैद है। कोई मायने नहीं रखता है।
यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी। कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते हैं कि रिटायरमेंट के बाद भी उनसे अपने अच्छे दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे नेम प्लेट लगाते हैं- तिवारी, मिश्रा, दुबे, चौबे, उपाध्याय, पाठक, श्रीवास्तव, सक्सेना,चौहान, मीणा, गुप्ता, मेघवाल, खान,अहमद, फ्रांसिस, जैन, सिंह,चौधरी, विश्वकर्मा, वर्मा, रिटायर्ड आइएएस,पीसीएस, आईपीएस, वन संरक्षक, रिटायर्ड जज आदि -आदि। ये रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, आरईएस, एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी, बाबू, प्रोफेसर, प्रिंसिपल, अध्यापक कौन-सा पद होता है भाई ? माना आप बहुत बड़े आफिसर थे, बहुत काबिल भी थे,पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती थी पर अब क्या बोल रहा है।दफ्तर का बाबू भी सलामी नहीं दागता है,पेंशन के लिए घूस मांगता है। अब तो आप फ्यूज बल्ब ही तो हैं। यह बात कोई मायने नहीं रखती कि आप किस विभाग में थे,कितने बड़े पद पर थे,कितने मेडल आपने जीते हैं। अगर कोई बात मायने रखती है- तो वह यह है कि आप इंसान कैसे है।आपने कितनी जिन्दगी को छुआ है।आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी।पद पर रहते हुए कितनी मदद ईमानदारी से किया है।समाज को क्या दिया है।तब सरकार और शासन के नियमों से बंधे थे।
हमेशा याद रखिए, बड़ा अधिकारी/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं, बड़ा इंसान बनना बड़ी बात जरूर है। इस लिए अच्छे इंसान बनिए और कुढ़ना बंद कीजिए।समाज में आईना की तरह दायित्व का निर्वहन करना चाहिए।सच को हमेशा याद रखिए।
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